गुरुवार, 21 जुलाई 2011

हे सरस्वती!

हे सरस्वती तूने कैसी बनी ये पढाई,
जो न शिक्षक और न छात्र की समझ में आई |
जब जब शिक्षक ने वाक्य बोला, आँखों के सामने घूमे शब्दों का हिंडोला,
देखे हम ऐसे जैसे तुक्तुकी सी लगायी,
पर यह ने शिक्षक और न छात्र की समझ में ई|

गंणित ने तो हम पर बोहोत है ज़ुल्म ढ़ाए,
उसका 'x' ढूँढने में सारा समय निकल जाये|
बच्चो की तो जैसे श्यामत आई,
पर यह न शिक्षक और न छात्र की समझ में आई|

इतिहास ने तो कर दिया वर्त्तमान ख़राब,
पानीपत की लड़ाई ने ही उड़ा दिए सारे ख्वाब ,
बच्चो में हुई विश्व युद्ध की लड़ाई,
पर यह न शिक्षक और न छात्र की समझ में आई |

अब आई विज्ञानं की बारी,
जिसपे चलती है दुनिया सारी|
वैज्ञानिको की दस पंद्रह मिनट के मज़े ने हमारी ४ साल की मस्ती उड़ाई।
पर यह न शिक्षक और न छात्र की समझ में आई ।

जो भी हो, यही दुनिया में क्रांति लायी,
एडिसन के रूप में जिसने बत्ती जलाई|
हे सरस्वती तूने सही बनाई ये पढाई,
जिसने पूरी दुनिया की नय्या पर कराइ|
- हार्दिक पराशर

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